कल सरकार संसद में वक्फ संशोधन विधेयक पेश करने जा रही है, और एक बार फिर मुस्लिम समुदाय में आशंका और संदेह का माहौल है। सरकार इसे वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और पारदर्शिता लाने वाला कदम बता रही है, लेकिन सच्चाई क्या है? क्या यह वास्तव में सुधार की दिशा में उठाया गया कदम है, या फिर यह मोदी सरकार की मुस्लिम विरोधी नीतियों की एक और कड़ी है, जिसके तहत उनकी धार्मिक संपत्तियों पर धीरे-धीरे नियंत्रण स्थापित किया जा सके?
आइए इस विधेयक के संभावित पहलुओं पर गौर करते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि इसके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव क्या हो सकते हैं, पुराने कानून से यह कितना अलग हो सकता है, और क्यों कई लोग इसे सरकार की एक छिपी हुई साजिश के तौर पर देख रहे हैं।
पुराना वक्फ अधिनियम, 1995: कुछ महत्वपूर्ण सेक्शन
पुराना वक्फ अधिनियम, 1995 वक्फ संपत्तियों के प्रशासन और प्रबंधन के लिए एक व्यापक कानूनी ढांचा प्रदान करता है। इसके कुछ महत्वपूर्ण सेक्शन इस प्रकार हैं:
- सेक्शन 4 (सर्वेक्षण): यह सेक्शन राज्य सरकारों को वक्फ संपत्तियों का सर्वेक्षण कराने का अधिकार देता है ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि कौन सी संपत्तियां वक्फ के अंतर्गत आती हैं।
- सेक्शन 9 (वक्फ का पंजीकरण): इस सेक्शन के तहत सभी वक्फों को वक्फ बोर्ड के साथ पंजीकृत कराना अनिवार्य है।
- सेक्शन 13 (वक्फ बोर्ड का गठन): यह सेक्शन राज्य स्तर पर वक्फ बोर्डों के गठन का प्रावधान करता है, जिसमें विभिन्न श्रेणियों के सदस्य शामिल होते हैं, जिनमें निर्वाचित सदस्य और सरकार द्वारा नामित सदस्य भी शामिल हो सकते हैं।
- सेक्शन 32 (वक्फ बोर्ड के कार्य): यह सेक्शन वक्फ बोर्ड के कार्यों और शक्तियों को परिभाषित करता है, जिसमें वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना, अतिक्रमणों को हटाना और वक्फ के उद्देश्यों को पूरा करना शामिल है।
- सेक्शन 51 (अतिक्रमणों को हटाना): यह सेक्शन वक्फ बोर्ड को वक्फ संपत्तियों पर हुए अतिक्रमणों को हटाने के लिए कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार देता है।
- सेक्शन 61 (लेखा परीक्षा): यह सेक्शन वक्फ बोर्डों के खातों की नियमित लेखा परीक्षा का प्रावधान करता है ताकि वित्तीय पारदर्शिता बनी रहे।
- सेक्शन 70 (विवादों का निपटारा): यह सेक्शन वक्फ संपत्तियों से संबंधित विवादों के समाधान के लिए वक्फ ट्रिब्यूनल के गठन का प्रावधान करता है।
पुराने बिल और नए में संभावित बदलाव:
नए विधेयक में संभावित रूप से पुराने अधिनियम के निम्नलिखित पहलुओं में बदलाव देखने को मिल सकते हैं:
- सेक्शन 13 (वक्फ बोर्ड का गठन): सरकार इस सेक्शन में बदलाव कर सकती है, जिससे वक्फ बोर्डों में सरकार के नामित सदस्यों की संख्या बढ़ सकती है या नियुक्ति की प्रक्रिया में सरकार का अधिक दखल हो सकता है। इससे बोर्ड की स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है।
- सेक्शन 4 (सर्वेक्षण): नए विधेयक में सर्वेक्षण की प्रक्रिया को और अधिक विस्तृत और सरकार-नियंत्रित बनाया जा सकता है। यह आशंका है कि इस प्रक्रिया का इस्तेमाल संपत्तियों की प्रकृति को बदलने या उन्हें विवादित घोषित करने के लिए किया जा सकता है।
- सेक्शन 32 (वक्फ बोर्ड के कार्य) और सेक्शन 51 (अतिक्रमणों को हटाना): नए विधेयक में इन सेक्शनों में ऐसे प्रावधान लाए जा सकते हैं जो सरकार को वक्फ बोर्डों के कार्यों पर अधिक नियंत्रण प्रदान करें और अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया को और तेज बनाएं, लेकिन निष्पक्षता की गारंटी के बिना यह चिंताजनक हो सकता है।
- विवाद समाधान प्रक्रिया: सेक्शन 70 के तहत गठित वक्फ ट्रिब्यूनलों की संरचना और कार्यप्रणाली में बदलाव किया जा सकता है, जिससे उन पर सरकारी प्रभाव बढ़ने की आशंका है।
विधेयक के संभावित सकारात्मक पहलू (सिर्फ दिखावा?):
- सेक्शन 61 (लेखा परीक्षा) को मजबूत करना: यदि नए विधेयक में लेखा परीक्षा के प्रावधानों को और अधिक कठोर बनाया जाता है और अनियमितताओं के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया जाता है, तो यह वित्तीय पारदर्शिता बढ़ाने में मददगार हो सकता है।
- अतिक्रमणों को तेजी से हटाना: यदि सेक्शन 51 में ऐसे प्रभावी प्रावधान लाए जाते हैं जिनका इस्तेमाल निष्पक्षता से हो, तो यह वक्फ संपत्तियों को अवैध कब्जों से बचाने में सहायक हो सकता है।
- डिजिटलीकरण और रिकॉर्ड का रखरखाव: यदि सरकार वक्फ संपत्तियों के डिजिटलीकरण और व्यवस्थित रिकॉर्ड रखने के लिए प्रभावी तंत्र स्थापित करती है, तो यह उनके बेहतर प्रबंधन में योगदान दे सकता है।
हालांकि, इन सकारात्मक पहलुओं को लेकर संदेह इसलिए है क्योंकि सरकार का पिछला रवैया और नीतियां मुस्लिम समुदाय को विश्वास दिलाने में विफल रही हैं।
विधेयक के संभावित नकारात्मक पहलू (असली चिंताएं):
- सेक्शन 13 का संभावित दुरुपयोग: यदि वक्फ बोर्डों में सरकार के अधिक सदस्य होंगे, तो बोर्ड अपने फैसले स्वतंत्र रूप से नहीं ले पाएंगे और सरकार के निर्देशों का पालन करने के लिए मजबूर हो सकते हैं। यह वक्फों की धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों की पूर्ति को बाधित कर सकता है।
- सर्वेक्षण का दुरुपयोग (सेक्शन 4): व्यापक सर्वेक्षण के नाम पर यदि संपत्तियों को विवादित घोषित किया जाता है या उनके स्वामित्व पर सवाल उठाए जाते हैं, तो यह मुस्लिम समुदाय के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।
- अतिक्रमण हटाने में भेदभाव: यह डर बना हुआ है कि सेक्शन 51 के नए प्रावधानों का इस्तेमाल चयनात्मक तरीके से किया जा सकता है, जिसमें केवल मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों को निशाना बनाया जाएगा।
- वक्फ ट्रिब्यूनलों पर प्रभाव: यदि वक्फ ट्रिब्यूनलों की नियुक्ति और कामकाज में सरकार का दखल बढ़ता है, तो न्याय मिलने में देरी हो सकती है या फैसले सरकार के पक्ष में आ सकते हैं।
- मुस्लिम समुदाय को कमजोर करने की साजिश: बहुत से मुसलमानों का मानना है कि यह विधेयक मोदी सरकार की उस व्यापक रणनीति का हिस्सा है जिसके तहत मुस्लिम समुदाय को हर तरह से कमजोर किया जा रहा है – चाहे वह उनकी नागरिकता का सवाल हो, उनकी संस्कृति का हो, या अब उनकी धार्मिक संपत्तियों का।
मोदी सरकार और मुस्लिम विरोधी षडयंत्र (एक गहरा संदेह):
पिछले कुछ वर्षों में मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों, जैसे कि नागरिकता संशोधन कानून (CAA), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) और अन्य नीतियों ने मुस्लिम समुदाय के बीच गहरी असुरक्षा और अविश्वास पैदा किया है। बार-बार दिए जाने वाले भड़काऊ बयान और अल्पसंख्यकों के प्रति उदासीन रवैये ने इस संदेह को और मजबूत किया है कि सरकार का एक छिपा हुआ एजेंडा है।
वक्फ संशोधन विधेयक को भी इसी कड़ी में देखा जा रहा है। कई लोगों का मानना है कि सरकार वक्फ संपत्तियों पर नियंत्रण करके न केवल मुस्लिम समुदाय की आर्थिक शक्ति को कमजोर करना चाहती है, बल्कि उनकी धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं को भी अपने अधीन करना चाहती है। यह डर इसलिए भी गहरा है क्योंकि सरकार ने इस विधेयक को लाने से पहले मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधियों या वक्फ बोर्डों के साथ पर्याप्त विचार-विमर्श नहीं किया है।
निष्कर्ष:
कल संसद में पेश होने वाला वक्फ संशोधन विधेयक निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। सरकार इसे सुधार और पारदर्शिता का नाम दे सकती है, लेकिन मुस्लिम समुदाय में इसे लेकर गहरी आशंकाएं हैं। पुराने वक्फ अधिनियम के महत्वपूर्ण सेक्शनों और नए विधेयक में संभावित बदलावों को देखते हुए, यह डर लाजमी है कि यह विधेयक वक्फ बोर्डों की स्वायत्तता को कम करेगा और सरकार को उनकी संपत्तियों पर अधिक नियंत्रण देगा।
अगर सरकार वास्तव में वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन चाहती है, तो उसे मुस्लिम समुदाय को विश्वास में लेना होगा, उनके साथ खुलकर बातचीत करनी होगी और ऐसे प्रावधान लाने होंगे जो निष्पक्ष और पारदर्शी हों। लेकिन मौजूदा माहौल और सरकार के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए, यह कहना मुश्किल है कि इस विधेयक का मकसद वास्तव में सुधार है या फिर यह मुस्लिम समुदाय को कमजोर करने की एक और चाल है। आने वाले दिन बताएंगे कि इस विधेयक का क्या रूप लेता है और इसका मुस्लिम समुदाय पर क्या प्रभाव पड़ता है। लेकिन फिलहाल, यह कहना गलत नहीं होगा कि यह विधेयक सरकार की नीयत पर एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा करता है।
